हम सभी
उलझे रहते हैं रोज़
कितने ही विचारों के जाल में
जिनकी
उलझन को सुलझा कर
कभी हो जाते हैं मुक्त
और कभी
फँसे रहते हैं
लंबे समय तक
जूझते रहते हैं
खुद से
कभी किसी और से ....
विचार
अपने तीखेपन से
कभी चुभते हैं
तीर की तरह
और कभी
करा देते हैं एहसास
शक्कर की मिठास का ....
सबके अपने अपने विचार
कभी एक से लगते हैं
कभी साधारण से लगते हैं
कभी असाधारण हो कर
छाए रहते हैं
कहीं भीतर तक ....
इन विचारों को
कहने का
लिखने का
दिखने और दिखाने का
सबका अपना तरीका है
जिसमे
कभी
होता है आकर्षण
और कभी विरक्ति
फिर भी हम सभी
मुक्त नहीं हो सकते
विचारों के
सार्वभौम अस्तित्व से।
~यशवन्त यश©
उलझे रहते हैं रोज़
कितने ही विचारों के जाल में
जिनकी
उलझन को सुलझा कर
कभी हो जाते हैं मुक्त
और कभी
फँसे रहते हैं
लंबे समय तक
जूझते रहते हैं
खुद से
कभी किसी और से ....
विचार
अपने तीखेपन से
कभी चुभते हैं
तीर की तरह
और कभी
करा देते हैं एहसास
शक्कर की मिठास का ....
सबके अपने अपने विचार
कभी एक से लगते हैं
कभी साधारण से लगते हैं
कभी असाधारण हो कर
छाए रहते हैं
कहीं भीतर तक ....
इन विचारों को
कहने का
लिखने का
दिखने और दिखाने का
सबका अपना तरीका है
जिसमे
कभी
होता है आकर्षण
और कभी विरक्ति
फिर भी हम सभी
मुक्त नहीं हो सकते
विचारों के
सार्वभौम अस्तित्व से।
~यशवन्त यश©
आपकी लिखी रचना मंगलवार 15 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
Bahut Sunder....
ReplyDeleteवाह :)
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeletebahut achha likha hai, sochpoorna abhivyakti
ReplyDeleteShubhkamnayein
Bilkul steek abhivyati....
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