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07 August 2014

ज़रूरी नहीं.....

ज़रूरी नहीं
कि लिखा हो
सब कुछ
अपने मतलब का
किसी किताब के
हर पन्ने पर
कुछ बातें
होती हैं
अर्थ हीन
तर्क हीन
हमारी नज़र में
लिये होती हैं
मंज़र
बंजर ज़मीन सा
जिसके चारों ओर
फैला रहता है
घना सुनसान ....

लेकिन
उसी किताब की
पथरीली
बंजर
ज़मीन पर
कुछ और नज़रें
खिलते देखती हैं
उल्लास के
अनेकों फूल
जिनकी
उम्मीदों भरी
मुस्कुराहट
उस सुनसान मे भी
कराती  है एहसास
किसी अपने के
यहीं कहीं
करीब होने का ....

मन की परतों के
अनगिनत
पन्नों वाली
वह किताब
खुद मे
भविष्य के
अनेकों चेहरे लिये
वर्तमान के दर्पण मे
हर पल
दिखा कर
अपनी छाया
झकझोरा करती है
नज़रों के
बे कसूर
भरम को।

~यशवन्त यश©

16 comments:

  1. बहुत शानदार लेखनी :)

    ये भी समझना जरूरी हैं
    लिखे होंगें इसने
    अपने निजी जज्बात भी
    अकेले में बैठ कर

    ReplyDelete
  2. बहुत शानदार लेखनी :)

    ये भी समझना जरूरी हैं
    लिखे होंगें इसने
    अपने निजी जज्बात भी
    अकेले में बैठ कर

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  3. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.08.2014) को "बेटी है अनमोल " (चर्चा अंक-1699)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  4. बहुत अच्छी रचना। बधाई।

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  5. बहुत सुन्दर !

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  6. बहुत गहरे अहसास...

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  7. सुन्दर रचना...

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  8. बहुत सुंदर लिखा है यश ...रक्षाबंधन की शुभकामनायें

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  9. उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

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  10. Kuchh kahe kuchh ankahe se bhaav shabd !

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