18 August 2014

चलो कहीं चलें इन अँधेरों से निकल कर

छोटी सी ज़िंदगी का
बहुत लंबा है सफर

चलो कहीं चलें
इन अँधेरों से निकल कर

कहीं जल रही है लौ
स्याह तस्वीरों की आँखों में

उलझे हैं जिनके होठ
बहते जीवन की बातों में

माना कि कठिन है
यहाँ काँटों भरी डगर

फिर फूल भी मिलेंगे
आगे कहीं बिखर कर

मिलेगा सुकुं रूह को
अब साहिल पर ही थम कर

चलो कहीं चलें
इन अँधेरों से निकल कर ।

~यशवन्त यश©

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (19-08-2014) को "कृष्ण प्रतीक हैं...." (चर्चामंच - 1710) पर भी होगी।
    --
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. शाब्दिक सुंदरता मनमोहक

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  3. बेहद सकारात्मक सोच को बयां करती उत्कृष्ट रचना।।।

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  4. bahut sunder abhivyakti.....ummeed bani rahe..koshishe jaari rahni chahiye

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  5. बहुत सुन्दर और भावुक अभिव्यक्ति

    जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाऐं ----
    सादर --

    कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------

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  6. असतो मा सद्गमय...अंधकार से प्रकाश की ओर जाना ही जीवन है...धरा के अंधकार में छुपा बीज एक दिन प्रकाश में प्रवेश करता है और चल पड़ता है...आकाश की ओर

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..शुभकामनाएं सहित..

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