आज से
शुरू हो गया है
उत्सव
गुणगान का
मेरी प्राण प्रतिष्ठा का
बिना यह समझे
बिना यह जाने
कि मिट्टी की
इस देह में
बसे प्राणों का मोल
कहीं ज़्यादा है
मंदिरों मे सजी
मिट्टी की
उस मूरत से
जिसके सोलह श्रंगार
और चेहरे की
कृत्रिम मुस्कुराहट
कहीं टिक भी नहीं सकती
मेरे भीतर के तीखे दर्द
और बाहर की
कोमलता के तराजू पर
मैं
दिखावा नहीं
यथार्थ के आईने में
कुटिल नज़रों के
तेज़ाब से झुलसा
खुद का चेहरा
रोज़ देखती हूँ
मैं देवी हूँ।
~यशवन्त यश©
owo-17092014
शुरू हो गया है
उत्सव
गुणगान का
मेरी प्राण प्रतिष्ठा का
बिना यह समझे
बिना यह जाने
कि मिट्टी की
इस देह में
बसे प्राणों का मोल
कहीं ज़्यादा है
मंदिरों मे सजी
मिट्टी की
उस मूरत से
जिसके सोलह श्रंगार
और चेहरे की
कृत्रिम मुस्कुराहट
कहीं टिक भी नहीं सकती
मेरे भीतर के तीखे दर्द
और बाहर की
कोमलता के तराजू पर
मैं
दिखावा नहीं
यथार्थ के आईने में
कुटिल नज़रों के
तेज़ाब से झुलसा
खुद का चेहरा
रोज़ देखती हूँ
मैं देवी हूँ।
~यशवन्त यश©
owo-17092014
सुंदर ।
ReplyDeleteजीती जागती देवी को अपमानित करते लोग पत्थर की देवियाँ पूजते हैं..कैसी विडम्बना है यह..
ReplyDeleteदिल को मथ देने वाली रचना ... सोचने को विवश करती ...
ReplyDeleteBahut bhaaawpurn rachna Yash ji..... Chand shabd me gahri baat kah di aapne ... Shubhkamnaayein !!
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteक्या बात है यश जी। इस रचना की तारीफ करने में क्या बोलू। निःशब्द हु। बेहतरीन
ReplyDeleteक्या बात है यश जी. कोई शब्द नहीं है आपकी भावनाओं की तारीफ में. आपने जिस शिद्दत से इसे लिखा है. वो बेहतरीन है. बहुत ही बढ़िया रचना
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसजीव का तिरस्कार और निर्जीव की पूजा को दर्शाती सुन्दर रचना !
ReplyDeleteनवरात्रि की हार्दीक शुभकामनाएं !
शुम्भ निशुम्भ बध -भाग ४
Namah Durge! bahut hi achha, gehri rachna
ReplyDeleteshubhkamnayen