गूंज रहे हैं आज
सप्तशती के
अनेकों मंत्र
हवा मे घुलती
धूप-अगरबत्ती
और फूलों की
खुशबू के साथ
अस्थायी विरक्ति का
सफ़ेद नकाब लगाए
झूमते
कीर्तन करते
कुछ लोग
शायद नहीं जानते
एक सच
कि मुझे पता है
उनके मन के भीतर की
हर एक बात
जिसकी स्याह परतें
अक्सर खुलती रही हैं
आती जाती
इन राहों के
कई चौराहों पर
जहाँ से
अनगिनत
रूप धर कर
मैं रोज़ गुजरती हूँ
मैं देवी हूँ।
~यशवन्त यश©
owo-17092014
सप्तशती के
अनेकों मंत्र
हवा मे घुलती
धूप-अगरबत्ती
और फूलों की
खुशबू के साथ
अस्थायी विरक्ति का
सफ़ेद नकाब लगाए
झूमते
कीर्तन करते
कुछ लोग
शायद नहीं जानते
एक सच
कि मुझे पता है
उनके मन के भीतर की
हर एक बात
जिसकी स्याह परतें
अक्सर खुलती रही हैं
आती जाती
इन राहों के
कई चौराहों पर
जहाँ से
अनगिनत
रूप धर कर
मैं रोज़ गुजरती हूँ
मैं देवी हूँ।
~यशवन्त यश©
owo-17092014
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteभाई
ReplyDeleteशुभ प्रभात
बस इतना ही
कि
झील सी गहरी हैं
तोरे मन की बतियाँ ......
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-09-2014) को "कुछ बोलती तस्वीरें" (चर्चा मंच 1750) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
शारदेय नवरात्रों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bahut umda abhivyakti... Ant me aapne likha ki jahan se aaneko roop dhar main har roz gujarti hun..... Main devi hun .... Bahut hi damdaar ....saarthak prastuti.... Lajawaab!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनवरात्रों की हार्दीक शुभकामनाएं !
शुम्भ निशुम्भ बध - भाग ५
शुम्भ निशुम्भ बध -भाग ४
सटीक सामयिक चिंतन
ReplyDeleteजय माँ!
Very nice post..
ReplyDeleteबेहतरीन।।।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने यश जी
बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteभावों से भरपूर अत्यंत सुन्दर पक्तियाँ। स्वयं शून्य
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजय मातारानी की
Recent Post ..उनकी ख्वाहिश थी उन्हें माँ कहने वाले ढेर सारे होते