शब्द !
जो बिखरे रहते हैं
कभी इधर
कभी उधर
धर कर रूप मनोहर
मन को भाते हैं
जीवन के
कई पलों को साथ लिये
कभी हँसाते हैं
कभी रुलाते हैं ....
इन शब्दों की
अनोखी दुनिया के
कई रंग
मन के कैनवास पर
छिटक कर
बिखर कर
आपस में
मिल कर
करते हैं
कुछ बातें
बाँटते हैं
सुख -दुख
अपने निश्चित
व्याकरण की देहरी के
कभी भीतर
कभी बाहर
वास्तविक से लगते
ये आभासी शब्द
मेरी धरोहर हैं
सदा के लिये।
~यशवन्त यश©
इन शब्दों की
अनोखी दुनिया के
कई रंग
मन के कैनवास पर
छिटक कर
बिखर कर
आपस में
मिल कर
करते हैं
कुछ बातें
बाँटते हैं
सुख -दुख
अपने निश्चित
व्याकरण की देहरी के
कभी भीतर
कभी बाहर
वास्तविक से लगते
ये आभासी शब्द
मेरी धरोहर हैं
सदा के लिये।
[यशोदा दीदी के ब्लॉग 'मेरी धरोहर' पर पूर्व प्रकाशित]
बहुत सुंदर रचना यश ।
ReplyDeleteशब्दों की अनोखी दुनिया..सुंदर भाव !
ReplyDeleteशब्दों के बिना जीवन जैसे मौन है ...
ReplyDeletesunder rachna hai.
ReplyDeleteshubhkamnayen
सुन्दर और सार्थक अकविता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है. बस इसमें इज़ाफा करते रहिये.
ReplyDeleteशब्द विना सब सून..सुन्दर रचना ..शुभकामनाएं यशवंत
ReplyDeleteअच्छी भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
राज चौहान
http://rajkumarchuhan.blogspot.in
अच्छी कविता ! बधाई और शुभकामनायें !
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