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17 September 2014

शब्द मेरी धरोहर हैं

शब्द !
जो बिखरे रहते हैं
कभी इधर
कभी उधर
धर कर रूप मनोहर
मन को भाते हैं
जीवन के
कई पलों को साथ लिये
कभी हँसाते हैं
कभी रुलाते हैं ....
इन शब्दों की
अनोखी दुनिया के
कई रंग
मन के कैनवास पर
छिटक कर
बिखर कर
आपस में
मिल कर
करते हैं
कुछ बातें
बाँटते हैं
सुख -दुख
अपने निश्चित
व्याकरण की देहरी के
कभी भीतर
कभी बाहर
वास्तविक से लगते
ये आभासी शब्द
मेरी धरोहर हैं
सदा के लिये।

~यशवन्त यश©

[यशोदा दीदी के ब्लॉग 'मेरी धरोहर' पर पूर्व प्रकाशित]

9 comments:

  1. शब्दों की अनोखी दुनिया..सुंदर भाव !

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  2. शब्दों के बिना जीवन जैसे मौन है ...

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  3. बहुत सुन्दर लिखा है. बस इसमें इज़ाफा करते रहिये.

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  4. शब्द विना सब सून..सुन्दर रचना ..शुभकामनाएं यशवंत

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  5. अच्छी भावपूर्ण रचना !
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

    राज चौहान
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

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  6. अच्छी कविता ! बधाई और शुभकामनायें !

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