01 October 2014

मैं 'देवी' हूँ-4 (नवरात्रि विशेष)

दुनिया की सूरत
देखने से पहले ही
मुझे गर्भ में मारने वालों !
मेरे सपने सच होने से पहले ही
दहेज की आग में
जलाने वालों !
सरे बाज़ार
मेरी देह की
नीलामी करने वालों !
बुरी नज़रों से
देखने वालों !
गली कूँचों
पार्कों में
मेरे दरबार
सजाने भर से
जागरण की रातों में
फिल्मी तर्ज़ पर बने
भजन
और भेंटें गाने भर से
इन सब से
न तुम्हें पुण्य मिलेगा
न ही मोक्ष मिलेगा
क्योंकि
तुम्हारे असली कर्म
दर्ज़ हैं
हर 'दामिनी'
हर 'निर्भया'
के दिल और
आत्मा से निकली
बददुआओं के
एक एक शब्द में ........
क्योंकि
तुम्हारे असली कर्म
दर्ज़ हैं
नश्तर की धार से बहते
मेरे लहू की
एक एक बूंद में .....
क्योंकि
तुम्हारे असली कर्म
दर्ज़ हैं
आग में जलकर
राख़ हुए
मेरे हर अवशेष में.....
तो
तुम अब जान लो
मैं पत्थर में प्राण नहीं
मैं साक्षात हूँ
तुम्हारे ही आस पास
तुम्हारी माँ
बहन-वामा
या बेटी हूँ
मैं देवी हूँ।

~यशवन्त यश©
owo-18092014

4 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति...
    दिनांक 2/10/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
    हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
    हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
    सादर...
    कुलदीप ठाकुर

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  2. बहुत ही सुन्दर और रहिस्य से भरी पँक्तिया
    आपना ब्लॉग , सफर आपका ब्लॉग ऍग्रीगेटर पर लगाया गया हैँ।

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  3. Bahut hi katu saty .... Ek ek shabd gahrayi se likhe hue.... Chintan ka vishy..kintu afsos jaane kab chintan kiyaa jaayega !!

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