इन जलते हुए
हजारों दीयों में
ढूंढ रहा हूँ
एक अपना दीया
जिसकी रोशनी
सैकड़ों अँधेरों के
उस पार
पहुँच कर
दिखा दे एक लौ
उन उम्मीदों की
जो अब तक
सिर्फ कल्पना बन कर
उतरती रही हैं
कागज़ के झीने
पन्नों पर ....
किरचे किरचे बन कर
अब तक
जो उड़ती रही हैं
हवा में
और चूमती रही हैं
धरती के पाँव
उन उम्मीदों की
एक लौ
गर पहुँच सके
उन अँधेरों के दर पर
जिनके भीतर कैद
आंसुओं का सैलाब
बेचैन है
सब्र के हर बांध को
तोड़ कर
नयी सड़कों पर
बह निकलने को
नये एहसासों के साथ
तब सार्थक होगी
मावस की
यह रोशन रात
गर ढूंढ सका
हजारों
जलते दीयों की
भूलभुलैया में
एक अपना दीया
जिसकी तलाश में
कितनी ही सदियाँ
बीत चुकीं
और कितनी ही
बीतनी बाकी हैं।
~यशवन्त यश©
हजारों दीयों में
ढूंढ रहा हूँ
एक अपना दीया
जिसकी रोशनी
सैकड़ों अँधेरों के
उस पार
पहुँच कर
दिखा दे एक लौ
उन उम्मीदों की
जो अब तक
सिर्फ कल्पना बन कर
उतरती रही हैं
कागज़ के झीने
पन्नों पर ....
किरचे किरचे बन कर
अब तक
जो उड़ती रही हैं
हवा में
और चूमती रही हैं
धरती के पाँव
उन उम्मीदों की
एक लौ
गर पहुँच सके
उन अँधेरों के दर पर
जिनके भीतर कैद
आंसुओं का सैलाब
बेचैन है
सब्र के हर बांध को
तोड़ कर
नयी सड़कों पर
बह निकलने को
नये एहसासों के साथ
तब सार्थक होगी
मावस की
यह रोशन रात
गर ढूंढ सका
हजारों
जलते दीयों की
भूलभुलैया में
एक अपना दीया
जिसकी तलाश में
कितनी ही सदियाँ
बीत चुकीं
और कितनी ही
बीतनी बाकी हैं।
~यशवन्त यश©
owo21102014519pm