02 October 2014

क्या ऐसा हो सकता है ?

नोटों पर छपी
तुम्हारी
मुस्कुराती तस्वीर
हर रोज़ गुजरती है
न जाने कितने ही
काले हाथों से ........

दीवारों पर लगी
तुम्हारी
मुस्कुराती तस्वीर
हर रोज़ गवाह बनती है
न जाने कितने ही
असत्य बोलों की .......

तुम
बदलना चाहते थे
देश समाज
और विश्व
पर तुम्हारा
असीम संघर्ष
अंतिम साँस के साथ ही
दफन हो गया
उन किताबों के
गर्द भरे पन्नों पर
जिन्हें झाड़ पोछ कर
सजाया जाता है
हर साल
आज ही के दिन .....

मुझे बताओ
तुम कहाँ हो ?
अगर हो यहीं कहीं
तो क्या दिला सकते हो यकीं
कि तुम फिर आओगे
आज की
छटपटाती आज़ादी को
दिखाने एक नयी राह .....

बापू !
क्या ऐसा हो सकता है  ?

~यशवन्त यश©

7 comments:

  1. सुन्दर रचना

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  2. दृढ संकल्प हो तो आज हर कोई "बापू" बन सकता है...मगर हर किसी के पास वो कलेजा कहाँ.... हमारा देश भी राम राज्य बन सकता है लेकिन पहल करने वाले वो इंसान कहाँ,

    खुबसुरत अंदाज

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  3. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (03.10.2014) को "नवरात महिमा" (चर्चा अंक-1755)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।दुर्गापूजा की हार्दिक शुभकामनायें।

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  4. Bahut sunder rachna....wakaayi jo desh badalna chahta tha aaj unki aatma ko hum sirf sirf dukh de rahein hain.....

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  5. Bahut sunder rachna....wakaayi jo desh badalna chahta tha aaj unki aatma ko hum sirf sirf dukh de rahein hain.....

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  6. aisa kyun nahi hoga....bapu hamare man me jinda hai

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  7. वही संदेश प्रकारान्तर से फिर सुनाई देने लगा है !

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