मैं या हम
कभी अकेले
कभी साथ
निकल चलते हैं
बाहर की ओर
देखने
घटना चक्र
सृष्टि चक्र
जो घूम रहा है
अपनी पूर्वनिश्चित
धुरी पर
तय परिपथ पर
जिससे पीछे हटना
बाहर निकलना
अब तक
संभव नहीं
लेकिन संभव हैं
अपार परिवर्तन
इसी सीमा के
भीतर
रिक्त स्थानों में
जहां
निर्वात के होते हुए भी
मैं या हम
देख सकते हैं
भविष्य के
वायु मण्डल को
अपने
अर्जित विज्ञान से।
~यशवन्त यश©
कभी अकेले
कभी साथ
निकल चलते हैं
बाहर की ओर
देखने
घटना चक्र
सृष्टि चक्र
जो घूम रहा है
अपनी पूर्वनिश्चित
धुरी पर
तय परिपथ पर
जिससे पीछे हटना
बाहर निकलना
अब तक
संभव नहीं
लेकिन संभव हैं
अपार परिवर्तन
इसी सीमा के
भीतर
रिक्त स्थानों में
जहां
निर्वात के होते हुए भी
मैं या हम
देख सकते हैं
भविष्य के
वायु मण्डल को
अपने
अर्जित विज्ञान से।
~यशवन्त यश©
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11-12-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1824 में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
बहुत बढ़िया
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