उड़ते
वक़्त के
बंद दरवाजों पर
देकर
एक दस्तक
अक्सर
करता हूँ
नाकाम सी
एक
कोशिश
कि
या तो
वह थम जाय
कुछ पल
करने को
कुछ बातें
या
ले चले
मुझे भी
अपने ही साथ
अपनी ही गति से
अपनी ही
अंतहीन
अनंत यात्रा पर....
लेकिन
यह
हो नहीं सकता
क्योंकि
मैं
नहीं हो सकता
मुक्त
वक़्त के ही बुने हुए
चक्रव्यूह से
जिसकी
भूलभुलैया में
भटकते ही रहना है
आदि से
अनंत तक.....
यूं ही
इसी तरह।
~यशवन्त यश©
owo01122014
वक़्त के
बंद दरवाजों पर
देकर
एक दस्तक
अक्सर
करता हूँ
नाकाम सी
एक
कोशिश
कि
या तो
वह थम जाय
कुछ पल
करने को
कुछ बातें
या
ले चले
मुझे भी
अपने ही साथ
अपनी ही गति से
अपनी ही
अंतहीन
अनंत यात्रा पर....
लेकिन
यह
हो नहीं सकता
क्योंकि
मैं
नहीं हो सकता
मुक्त
वक़्त के ही बुने हुए
चक्रव्यूह से
जिसकी
भूलभुलैया में
भटकते ही रहना है
आदि से
अनंत तक.....
यूं ही
इसी तरह।
~यशवन्त यश©
owo01122014
आपकी लिखी रचना बुधवार 03 दिसम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसमय के चक्र से कौन बच सका है ... कौन बाहर निकल सका है ...
ReplyDeleteगहरा एहसास लिए हैं आपके भाव ...
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहो सकता है..हुआ है..वर्तमान में रहने की कला इसी चक्र से बाहर निकलने की कला है...
ReplyDeleteजीवन के भूलभुलैया में भटकते है हम सब ..यूँ हैं ..बहुत सही कहा आपने
ReplyDeleteबहुत बढ़िया यश
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