20 January 2015

सीढ़ी

कदम दर कदम
कहीं दूर को जाती हुई सी
मंज़िल से मिल कर
मुस्कुराती हुई सी ....
नींव पर टिके रह कर
छूते हुए ज़मीं को
आसमां से कभी
कुछ बतियाती हुई सी .....
सीढ़ी!
अपने आप में
ककहरा है जिंदगी का ....
सीढ़ी !
अपने आप में
फलसफा है जिंदगी का ...
बिल्कुल शांत
निश्चिंत
और अपने स्थायी भाव में
फर्श को अर्श से
मिलाती हुई सी
कभी अर्श को फर्श पर
लाती हुई सी
सीढ़ी !
इबारत है
चहकती भोर के शोर सी
सीढ़ी !
इमारत है
भविष्य के नये छोर की .....
बिल्कुल शांत
निश्चिंत
मगर कई कदमों से
बिंधती हुई सी
खुद ही खुद में
हमेशा मिलती हुई सी
सीढ़ी !
एक नदी है
जो हमेशा बहती रहती है
चट्टानों पर चढ़ती है
उतरती है
और चलती रहती है ....
मंज़िल से दूर
कभी मंज़िल से मिलते हुए
सीढ़ी !
अड़ी है -खड़ी है
दीया दिखाते हुए
समझाते हुए
और कुछ सिखाते हुए। 

~यशवन्त यश©

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