कहना नहीं आता
लिखना नहीं आता
शब्दों से कभी
खेलना नहीं आता।
ये जो कुछ भी है बिखरा
और रचा बसा यहाँ पर
किस दिमाग की उपज
समझ नहीं आता।
बस देखता हूँ नज़ारे
कुछ यहाँ के कुछ वहाँ के
पेड़ों के हिलते पत्ते
और इशारे हवा के ।
झोंकों से झूमते मन को
कभी नाचना नहीं आता
गुनगुनाता है गीत
कभी गाना नहीं आता।
सजा देता है दर्द
खुशी और गम के आंसुओं को
पिघलते मोम को कभी
जलना नहीं आता।
कहना नहीं आता
लिखना नहीं आता
इन शब्दों को कविता
बनना नहीं आता।
~यशवन्त यश©
लिखना नहीं आता
शब्दों से कभी
खेलना नहीं आता।
ये जो कुछ भी है बिखरा
और रचा बसा यहाँ पर
किस दिमाग की उपज
समझ नहीं आता।
बस देखता हूँ नज़ारे
कुछ यहाँ के कुछ वहाँ के
पेड़ों के हिलते पत्ते
और इशारे हवा के ।
झोंकों से झूमते मन को
कभी नाचना नहीं आता
गुनगुनाता है गीत
कभी गाना नहीं आता।
सजा देता है दर्द
खुशी और गम के आंसुओं को
पिघलते मोम को कभी
जलना नहीं आता।
कहना नहीं आता
लिखना नहीं आता
इन शब्दों को कविता
बनना नहीं आता।
~यशवन्त यश©
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