शून्य से चलकर
शून्य पर पहुँच कर
शून्य मे उलझ कर
शून्य सा ही हूँ
जैसा था पहले
वैसा ही हूँ ।
देखता हूँ सपने
सुनहरी राहों के नींद में
हर सुबह को काँटों पर
चलता ही हूँ
जैसा था पहले
वैसा ही हूँ ।
जो मन में आता है
उसे यहीं पर लिख कर
कुछ अपने ख्यालों में
जीता ही हूँ
जैसा था पहले
वैसा ही हूँ ।
~यशवन्त यश©
शून्य पर पहुँच कर
शून्य मे उलझ कर
शून्य सा ही हूँ
जैसा था पहले
वैसा ही हूँ ।
देखता हूँ सपने
सुनहरी राहों के नींद में
हर सुबह को काँटों पर
चलता ही हूँ
जैसा था पहले
वैसा ही हूँ ।
जो मन में आता है
उसे यहीं पर लिख कर
कुछ अपने ख्यालों में
जीता ही हूँ
जैसा था पहले
वैसा ही हूँ ।
~यशवन्त यश©
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