27 March 2015

एक कालजयी कृति के बनने की कहानी--क्षमा शर्मा जी का आलेख

हाल ही में बाल साहित्य से जुड़ी साहित्य अकादेमी की गोष्ठी में एक महिला वक्ता ने कहा कि हमें एलिस इन वंडरलैंड और पंचतंत्र से मुक्त होना होगा। किसी हद तक उनकी बात सही हो सकती है, मगर यह भी सोचने की बात है कि एलिस इन वंडरलैंड आज तक न सिर्फ बच्चों में, बल्कि बड़ों के बीच भी बेहद लोकप्रिय है। इस पुस्तक को बच्चों के बीच आए 150 साल हो चुके हैं। न जाने कितनी पीढ़ियां इसे पढ़कर बड़ी हुई हैं। यह  पुस्तक एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो बोलने वाले खरगोश के बिल में गिरकर एक अनोखे राज्य में पहुंच जाती है। वहां उसका सामना विचित्र व जादुई दुनिया से होता है।

बच्चे कुतूहल और फिर क्या हुआ, कैसे हुआ, क्या ऐसा हो सकता है आदि बातों को बहुत पसंद करते हैं। इस पुस्तक की डेढ़ सदी से चली आती लोकप्रियता इसी का प्रमाण है। इसे अंग्रेजी की सबसे अधिक लोकप्रिय किताब माना जाता है। कैसा संयोग है कि एलिस व हैरी पॉटर, दोनों जादुई दुनिया के पात्र हैं, दोनों ब्रिटेन से आते हैं और दोनों किताबें अंग्रेजी में लिखी गई हैं। एलिस इन वंडरलैंड को लुइस कैरोल का लिखा माना जाता है। पर पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह असली नाम नहीं है। इसके लेखक ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के गणित के प्रोफेसर चाल्र्स लुडविग डॉज्सन थे। इसकी रचना का किस्सा बेहद मजेदार है।

हेनरी लिडिल भी ऑक्सफोर्ड में पढ़ाते थे और उनके कई बच्चों में एलिस नाम की एक बच्ची भी थी। चाल्र्स लुडविग हेनरी के दोस्त थे। बच्चे उन्हें बहुत पसंद करते थे, क्योंकि वह बच्चों को तरह-तरह की कहानियां सुनाते थे। एक बार बच्चों के साथ चाल्र्स नाव में सैर कर रहे थे। इसी दौरान बच्चों के आग्रह पर उन्होंने एक कहानी सुनाई। इसकी नायिका एलिस ही थी। इस रोमांचक कहानी को सुनकर बच्चे बहुत खुश हुए। एलिस ने उनसे इसे लिखने को कहा। चाल्र्स ने इसे लिखकर अपने दोस्त को दिखाया। दोस्त और उनके बच्चों को भी यह उपन्यास बहुत पसंद आया। चार्ल्स ने लिखते वक्त बाकायदा रिसर्च की कि उस इलाके में कौन-कौन से जानवर पाए जाते हैं। साल 1865 में इस पुस्तक को मैक्मिलन ने छापा। इससे पहले क्रिसमस गिफ्ट के रूप में चार्ल्स ने इसकी हस्तलिखित प्रति एलिस को भेंट की थी। तब इसका नाम एलिसिज एडवेंचर्स इन वंडरलैंड था। लेखक ने पुस्तक में एलिस को नायिका बनाया था। मगर चार्ल्स से जब भी पूछा गया, उन्होंने इससे इनकार किया कि उनकी पुस्तक की नायिका वही एलिस है, जिसे वह जानते हैं। हालांकि असली एलिस और कहानी की नायिका एलिस, दोनों का जन्मदिन एक ही था ‘चार मार्च।’ एलिस ने वह हस्तलिखित प्रति 1926 में नीलाम कर दी। एलिस के पति की मृत्यु हो चुकी थी और वह गरीबी में दिन काट रही थीं। इस नीलामी से उन्हें 15,400 पौंड मिले थे, जो उस समय एक बड़ी राशि थी।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)  

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