यहीं कहीं
कभी कभी
मन के
एक कोने मे
छुप कर
जी भर
बातें करता हूँ
खुद से ही
अनकही को
कहता हूँ
अंधेरों से भरे
सुनसान रस्तों पर
डरता हूँ
मगर चलता हूँ
हताशा-निराशा के पलों में
झुरमुटों की ओट से
किसी रोशनी की
तमन्ना
और उम्मीद लिये
अपने मन की
सुनता चलता हूँ
यूं ही जीता चलता हूँ।
~यशवन्त यश©
कभी कभी
मन के
एक कोने मे
छुप कर
जी भर
बातें करता हूँ
खुद से ही
अनकही को
कहता हूँ
अंधेरों से भरे
सुनसान रस्तों पर
डरता हूँ
मगर चलता हूँ
हताशा-निराशा के पलों में
झुरमुटों की ओट से
किसी रोशनी की
तमन्ना
और उम्मीद लिये
अपने मन की
सुनता चलता हूँ
यूं ही जीता चलता हूँ।
~यशवन्त यश©