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08 April 2015

बदलता ज़माना .....

कभी
किसी जमाने में
निकला करते थे
सूरज और चाँद
पेड़ों की
या
पहाड़ों की
ओट से
हँसते मुस्कुराते हुए
अपनी गरमाहट
और ठंडक से 
दिया करते थे
शांति 
झुलसते या
ठिटुरते मन को ....
और अब
आज के
इस दौर में
चाँद और
सूरज पर
दिखने लगा है
असर
समय के
संक्रमण का  .....
दोनों
निकलते हैं
अब भी
अपने समय से 
एक उदासी के साथ
तलाशते हैं
हरी पत्तियों का
स्वागत हार
लेकिन
अब इनके
चेहरे के सामने
हर सुबह और शाम 
खड़ी होती है 
सीमेंट की
ऊंची दीवार 
जिसके उस पार
प्रकृति से बेपरवाह
हम सब
उलझे रहते हैं
बदलते जमाने की
भूल भुलैया में। 
 
~यशवन्त यश©

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