13 June 2015

कल्पना.....

अक्सर
हमारी कल्पना
गुमसुम सी होकर
कहीं
खो सी जाती है
निराशा में
सो सी जाती है
कई प्रयासों के बाद भी
अपनी अनकही
उदासी में
ढूंढती फिरती है
शब्दों और भावों को
व्यवहारों को
विचारों को ....
फिर कहीं थक कर
हर जाती है
अक्सर
हमारी कल्पना
कहीं खो जाती है।

~यशवन्त यश©

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