बस यूं ही
मन के साथ चलता हूँ
कहता हूँ
कुछ बाहर की
कुछ भीतर की
यहाँ वहाँ की
देख कर-सुनकर
खुद से चुगली करता हूँ
आईने में
निहार निहार कर
आँखों के काले धब्बे
झाइयाँ और बेजान
रूखी त्वचा
उम्र के अंत पर भी
अनंत उमंगों का
खाली झोला लटकाए
टकटकी लगाए
कहीं कोने में बैठा हुआ
बंद पलकों के पर्दे पर
आते जाते लोगों को देखता हुआ
बस यूं ही
वक़्त के हमकदम होता हूँ
मन के साथ चलता हूँ ।
~यशवन्त यश©
मन के साथ चलता हूँ
कहता हूँ
कुछ बाहर की
कुछ भीतर की
यहाँ वहाँ की
देख कर-सुनकर
खुद से चुगली करता हूँ
आईने में
निहार निहार कर
आँखों के काले धब्बे
झाइयाँ और बेजान
रूखी त्वचा
उम्र के अंत पर भी
अनंत उमंगों का
खाली झोला लटकाए
टकटकी लगाए
कहीं कोने में बैठा हुआ
बंद पलकों के पर्दे पर
आते जाते लोगों को देखता हुआ
बस यूं ही
वक़्त के हमकदम होता हूँ
मन के साथ चलता हूँ ।
~यशवन्त यश©
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