08 June 2015

बस यूं ही

बस यूं ही
लिख देता हूँ
कभी कभी
मन में आती
कुछ बातों को
दे देता हूँ
अपने शब्द 
अपने भाव
अपनी संतुष्टि के लिए
अपने अहं
गुस्से और खुशी को
कर देता हूँ ज़ाहिर
कभी कागज़ के
किसी पन्ने पर
कभी साझा कर लेता हूँ
की बोर्ड के खटराग से
अंतर्जाल की
आभासी असीम दुनिया में
सबकी पसंद -नापसंद से 
बेशक
बेपरवाह हो कर
अपनी ही धुन में
अपनी ही राह पर
अकेला चल देता हूँ
बस यूं ही
कभी कभी
कुछ लिख देता हूँ।

~यशवन्त यश©

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