व्यापमं कोई पहला घोटाला नहीं है, और न ही यह भारत की राजनीति को झटका देने वाला शायद अंतिम घोटाला हो। लेकिन तमाम दूसरे घोटालों से यह इस मायने में अलग है कि इसमें मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब तक, इस घोटाले से जुड़े लगभग 45 लोगों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। ये सब या तो घोटाले से फायदे कमाने वाले लोग थे, या बिचौलिए थे। कम से कम दो मामलों में पुलिस की छानबीन में मदद कर रहे लोगों की मौत हुई है। राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान इस तरफ तब गया, जब एक प्रतिष्ठित टीवी चैनल के पत्रकार की रहस्यमय तरीके से मौत हुई। वह पत्रकार एक मेडिकल छात्रा के पिता के साक्षात्कार के लिए मध्य प्रदेश गया था, जिसे घोटाले का लाभ मिला था और तीन साल पहले रेलवे पटरी के करीब उसकी लाश मिली थी। पुलिस का कहना है कि पत्रकार की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई, लेकिन वह युवा पत्रकार सिर्फ 38 साल का था और दिल की बीमारी का उसका कोई ज्ञात इतिहास भी नहीं था।
इस घोटाले से जुड़ी सभी मौतें रहस्यमयी और अस्वाभाविक तरीके से हुई हैं, बल्कि विचित्र तथ्य यह है कि व्यापमं घोटाले की जांच करने वाली एसटीएफ टीम या पुलिस एक भी केस की तह तक नहीं पहुंच पाई। सभी मौतों को या तो स्वाभाविक या आत्महत्या या फिर सड़क दुर्घटना के तौर पर देखा गया। ये मौतें क्या इत्तफाक हैं या हत्याकांड या फिर दोनों? मौत के आंकड़े बढ़ रहे हैं और अब किसी अन्य की मौत से पहले लोगों को जवाब चाहिए। अच्छी बात यह है कि अपने पुराने रुख से पलटते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सीबीआई जांच की मांग स्वीकार कर ली है।
उन्होंने कहा है कि वह सीबीआई जांच की सिफारिश करेंगे। जरूरी यह है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक स्वतंत्र जांच हो, जिससे यह जन-संदेश जाए कि जांच के नतीजे किसी भी तरह से प्रभावित नहीं हैं, न कि यह एहसास हो कि एक सरकारी एजेंसी ने यह जांच की है। व्यापमं घोटाले से कई मुद्दे उभरते हैं। पहला, यह भाजपा के भ्रष्टाचार-विरोधी घोषणा-पत्र की असलियत को उजागर करता है। वरिष्ठ भाजपा नेता, उनके सहयोगी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई नेता और नौकरशाह, इस कई करोड़ के घोटाले में आरोपी हैं, जिसमें सरकारी नौकरियों में भर्ती और मेडिकल कॉलेजों के लिए छात्रों के चयन को ताकतवर माफिया-तंत्र द्वारा संचालित किया गया। शायद यह अब तक का सबसे बड़ा संगठित अपराध है, हालांकि पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों में भी इस तरह के भर्ती-घोटाले हुए हैं। लेकिन व्यापमं घोटाला उन सबको इसलिए पछाड़ देता है, क्योंकि एक तो घपला बड़े पैमाने पर हुआ और फिर यह कई वर्षों तक चलता रहा।
भ्रष्टाचार के आरोप मुख्यमंत्री के दफ्तर तक ही नहीं पहुंचे, बल्कि इसमें मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी के नाम भी आए। मुख्यमंत्री के सचिव भी संदिग्ध हैं। घोटाले का यह झटका इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि चौहान को भाजपा का आदर्श मुख्यमंत्री माना जाता रहा है और एक समय में कई लोगों को वह भावी प्रधानमंत्री के रूप में दिख रहे थे। उन्हें साफ, ईमानदार और सरल इंसान के तौर पर देखा जाता था, जिसने मध्य प्रदेश को 'बीमारू' राज्य के दर्जे से निकालकर, उसको भारत में सबसे तेजी से विकास करने वाले प्रदेशों की कतार में पहुंचाया। चौहान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आंख के भी तारे हैं, जो मध्य प्रदेश सरकार को निगलते इस स्कैंडल पर रहस्यमयी खामोशी धारण कर चुका है। देखा जाए, तो व्यापमं ने संघ के इस दावे को नुकसान पहुंचाया है कि उसके द्वारा प्रशिक्षित मजबूत नेतृत्व सुशासन देने की क्षमता रखते हैं।
दूसरा, व्यापमं घोटाला कई तरह से 2-जी या यहां तक कि बोफोर्स घोटाले से बदतर है। दरअसल, इसमें धांधली के महज चौंकाने वाले आंकड़े नहीं हैं, जैसे बोफोर्स में कहा जाता है कि 64 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ या 2-जी में 1,78,000 करोड़ रुपये की गड़बड़ी हुई। मेडिकल प्रवेश परीक्षा या सरकारी भर्ती में फर्जीवाड़ा समान अवसरों के साथ योग्यता-आधारित तंत्र के निर्माण की उम्मीद को नष्ट करता है। हजारों नौजवान छात्रों और रोजगार तलाशते लोगों के लिए इससे बुरी चीज क्या हो सकती है कि उनकी कड़ी मेहनत व वर्षों की पढ़ाई कोई मायने नहीं रखती, क्योंकि कॉलेज में दाखिला और सरकारी नौकरी पैसों के दम पर खरीदी जा सकती है।
राजीव गांधी को उस तोप की घूसखोरी के आरोप ने अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया गया, जिसने कारगिल युद्ध में जीत दिलाई। 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन में पक्षपात के जरिये देश को आर्थिक नुकसान पहुंचाने के आरोप में कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार को सत्ता से जाना पड़ा। उस आक्रोश में यह तक भुला दिया गया कि देश में मोबाइल कॉल सस्ती बनी रही, क्योंकि संप्रग सरकार ने 2001 में तय बेस रेट में कोई बदलाव नहीं किया।
वहीं दूसरी तरफ, व्यापमं घोटाला सीधे आम आदमी को चोट पहुंचाता है, खासतौर पर उन युवाओं को, जिन्हें हमारी आबादी का सबसे बड़ा तबका बताया जाता है। ऐसे में, क्या एक नौजवान उस व्यवस्था के प्रति अब कोई आस्था रख सकता है, जो भ्रष्टाचार में डूबी है और उसमें आसानी से हेराफेरी की जा सकती है? मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों से पास डॉक्टरों की योग्यता या फिर व्यापमं के जरिये नियुक्त पुलिस जवानों और सरकारी बाबुओं की क्षमता या ईमानदारी के बारे में सोचकर भी डर लगता है। विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्रों के समूह में अपनी जगह पक्की करने के लिए आगे बढ़ने की बजाय व्यापमं जैसे घोटाले हमें सिर्फ अंधकार व नाउम्मीदी की ओर ले जाते हैं।
वरिष्ठ भाजपा नेताओं के कदाचार के मामले पिछले कुछ हफ्तों से लगातार उजागर हो रहे हैं, जो कि चुनाव से पहले की नरेंद्र मोदी की छवि को फीका करते हैं। ललित मोदी जैसे विवादास्पद शख्स के साथ सुषमा स्वराज व वसुंधरा राजे की 'ललितगेट' में संदेहपूर्ण संलिप्तता है। इसके अलावा, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजू का गुस्सा दिलाने वाला वीवीआईपी बर्ताव, महाराष्ट्र की मंत्री पंकजा मुंडे के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप, और अब जटिल होता व्यापमं घोटाला भी लोगों के सामने है, जिसमें मृतकों की तादाद बढ़ रही है। यह सब कुछ भाजपा शासन में नए कल के भरोसे को तोड़ता है।
इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी और दृढ़ता से कदम न उठाना, इस सरकार को यूपीए-तीन जैसा बना देता है। मतदाताओं ने उन्हें इसके लिए तो नहीं चुना। यह भी गौरतलब है कि तीन दशकों में किसी राजनीतिक पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, तब लोगों ने उन्हें स्पष्ट जनादेश दिया। इसलिए उन्हें कदम उठाना चाहिए। जांच को सीबीआई के हवाले करना व सर्वोच्च न्यायालय से निगरानी का अनुरोध करना, एक अच्छा कदम होगा।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
साभार-'हिंदुस्तान'08/07/2015
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