बेतरतीब
भटकते भटकते
चलते चलते
इन गलियों में
थक हार कर
बैठ कर
कुछ सोच कर
उठ कर
चल कर
मंज़िल के
करीब आने तक
पता नहीं क्यों
फिर गुम हो जाता हूँ
एक नयी
भूलभुलैया में ।
~यशवन्त यश©
भटकते भटकते
चलते चलते
इन गलियों में
थक हार कर
बैठ कर
कुछ सोच कर
उठ कर
चल कर
मंज़िल के
करीब आने तक
पता नहीं क्यों
फिर गुम हो जाता हूँ
एक नयी
भूलभुलैया में ।
~यशवन्त यश©
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