25 July 2015

जब नहीं होता कुछ नया कहने के लिए

जब नहीं होता
कुछ नया कहने के लिए 
तब हम देखने लगते हैं
पुरानी
बीत चुकी बातों को
फिर से एक बार
खोजने लगते हैं
उन्हीं में से
कुछ नया
अपने मतलब का
और पिरो लेते हैं
एक माला
कई पुरानी बातों के
कुछ हिस्सों को मिला कर
बना देते हैं
कुछ नया सा
जब नहीं होता अपने पास
कुछ कहने के लिए।

~यशवन्त यश©

3 comments:

  1. जिन्दगी के फलसफे को बहुत ही सरज अंदाज में कहा है आपने। बधाई हो। हो सके तो अपनी अप्रकाशित रचनाएँ मुझ तक पहुँचाइए। समीक्षा संग प्रकाशित कर खुशी होगी।
    स्वयं शून्य

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद! किन्तु क्षमा करें जैसा कि इस ब्लॉग के आरंभ मे ही स्पष्ट है, मैं अपने लिखे को किसी समीक्षा इत्यादि के उपयुक्त नहीं समझता। यह ब्लॉग सिर्फ आत्म संतुष्टि का एक साधन मात्र है।

      Delete
    2. जी धन्यवाद यश जी। मैं आपके निर्णय का सम्मान करता हूँ। खैर यदि अनुमति हो तो अपने ब्लाग पर बिना समीक्षा ही प्रकाशित करना चाहुँगा। परन्तु आपको उचित लगे तो।
      धन्यवाद
      राजीव

      Delete