इस शोर में भी
कहीं सुनाई देती है
अजीब सी
खामोशी
जो अनकहे ही
कह देती है
बहुत कुछ
जो कहीं छुपा सा है
इस भीड़ में
कहीं दबा सा है
आ जाता है
सामने
जब खामोशी
खोल देती है
अपनी जुबां
बहते सैलाब के साथ।
~यशवन्त यश©
कहीं सुनाई देती है
अजीब सी
खामोशी
जो अनकहे ही
कह देती है
बहुत कुछ
जो कहीं छुपा सा है
इस भीड़ में
कहीं दबा सा है
आ जाता है
सामने
जब खामोशी
खोल देती है
अपनी जुबां
बहते सैलाब के साथ।
~यशवन्त यश©
वाह बहुत ही सुन्दर और जीवन्त भाव लिए हुई है आपकी कविता।
ReplyDeleteस्वयं शून्य