मुझे याद नहीं कि जन्माष्टमी और शिक्षक दिवस एक साथ कब पड़े थे। इस साल तो एक छुट्टी मारी गई। फर्क क्या पड़ता है? दिन में शिक्षक दिवस। रात में जन्माष्टमी। जन्माष्टमी से याद आया कि शिक्षक दिवस के दिन कोई कृष्ण-सुदामा के गुरु संदीपन को याद क्यों नहीं करता? संदीपन आश्रम एक तरह का हॉस्टल था। कृष्ण अपर क्लास के थे, और सुदामा लोअर। वहां को-एजुकेशन होती, तो राधा भी साथ पढ़ती। कृष्ण तो राजा बनकर द्वारका चले गए, लेकिन सुदामा की परंपरा बनी रही।
खासतौर पर हिंदी का टीचर आज भी विप्र सुदामा जैसा लगता है। उसकी गति क्या होती है, यह आप हिंदी दिवस के दिन देख लेना। सरकारी कृष्ण उन्हें शॉल, नारियल, गुलदस्ता और 51 रुपये नकद देकर घर लौटाएंगे। सुदामा की पत्नी खीझती रहेगी।
कभी मेरे मित्र कवि कुल्हड़ देहरादूनी ने कृष्ण के महल के आगे खड़े सुदामा का चित्रण किया था। द्वारपाल कृष्ण से कहता है कि- महाराज, बाहर एक व्यक्ति खड़ा है। कृष्ण ने पूछा- कौन है, कैसा है? द्वारपाल बोला- खिचड़ी से बाल और छितरी सी दाढ़ी है/ गंदे से कुरते पे ढीलो पजामा/ देखन में कम्युनिस्ट लगे है/ बतावत आपनो नाम सुदामा। ये तत्कालीन समकालीनता थी। कृष्ण तो बदल गए, सुदामा जस के तस। हर पुलिस लाइन में जन्माष्टमी प्रायश्चित के तौर पर मनाई जाती है। इसी दिन जेल के सिपाही ऐन वक्त पर सो गए थे, इसी कारण वासुदेव जी कृष्ण को लेकर फरार हो सके। पुलिस आज तक शर्मसार है।
लेकिन वक्त पर सो जाने का स्वभाव थोड़े ही छूटता है। अब शिक्षा की बात करें। अब तो हाल यह है कि- आधे शिक्षक बैठे अनशन/ बाकी शिक्षक करें प्रदर्शन/ हैरत में हैं राधाकृष्णन/ स्मृति है ईरानी भैया अपने मोदीजी के बूते/ टीचर जी के चरण छोड़कर/ सारे छात्र छू रहे जूते। वैसे आज विचित्र संजोग है। एक तरफ राधा-कृष्ण, दूसरी तरफ राधाकृष्णन। नवीनतम टीप का बंद तो यह है कि कल मेरे बेटे ने पूछा- पापा, अगर शीना बोरा हत्याकांड पर फिल्म बनाई जाए, तो इंद्राणी मुखर्जी के रोल में कौन फिट रहेगा? मैंने तुरंत जवाब दिया- राधे मां।
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स्रोत:-'हिंदुस्तान' -05/09/2015
खासतौर पर हिंदी का टीचर आज भी विप्र सुदामा जैसा लगता है। उसकी गति क्या होती है, यह आप हिंदी दिवस के दिन देख लेना। सरकारी कृष्ण उन्हें शॉल, नारियल, गुलदस्ता और 51 रुपये नकद देकर घर लौटाएंगे। सुदामा की पत्नी खीझती रहेगी।
कभी मेरे मित्र कवि कुल्हड़ देहरादूनी ने कृष्ण के महल के आगे खड़े सुदामा का चित्रण किया था। द्वारपाल कृष्ण से कहता है कि- महाराज, बाहर एक व्यक्ति खड़ा है। कृष्ण ने पूछा- कौन है, कैसा है? द्वारपाल बोला- खिचड़ी से बाल और छितरी सी दाढ़ी है/ गंदे से कुरते पे ढीलो पजामा/ देखन में कम्युनिस्ट लगे है/ बतावत आपनो नाम सुदामा। ये तत्कालीन समकालीनता थी। कृष्ण तो बदल गए, सुदामा जस के तस। हर पुलिस लाइन में जन्माष्टमी प्रायश्चित के तौर पर मनाई जाती है। इसी दिन जेल के सिपाही ऐन वक्त पर सो गए थे, इसी कारण वासुदेव जी कृष्ण को लेकर फरार हो सके। पुलिस आज तक शर्मसार है।
लेकिन वक्त पर सो जाने का स्वभाव थोड़े ही छूटता है। अब शिक्षा की बात करें। अब तो हाल यह है कि- आधे शिक्षक बैठे अनशन/ बाकी शिक्षक करें प्रदर्शन/ हैरत में हैं राधाकृष्णन/ स्मृति है ईरानी भैया अपने मोदीजी के बूते/ टीचर जी के चरण छोड़कर/ सारे छात्र छू रहे जूते। वैसे आज विचित्र संजोग है। एक तरफ राधा-कृष्ण, दूसरी तरफ राधाकृष्णन। नवीनतम टीप का बंद तो यह है कि कल मेरे बेटे ने पूछा- पापा, अगर शीना बोरा हत्याकांड पर फिल्म बनाई जाए, तो इंद्राणी मुखर्जी के रोल में कौन फिट रहेगा? मैंने तुरंत जवाब दिया- राधे मां।
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स्रोत:-'हिंदुस्तान' -05/09/2015
आधे शिक्षक बैठ अनशन
ReplyDeleteबाकी शिक्षक करे प्रदर्शन
हैरत में है राधाकृष्णन
स्मृति ईरानी है भैया अपने मोदी जी के बुते
टीचर जी का पैर छोड़कर
सारे छात्र छू रहे जूते
.... सटीक प्रस्तुति
बहुत खूब..वर्तमान समाज का सही चित्रण..
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