इधर भी खड़े
कुछ उधर भी खड़े
चरणों में लिपटे पड़े
सब चारण तैयार हैं.... ।
हाथों में स्मृति चिह्न लिए
मुद्रा-प्रशस्ति गिन लिए
गुण, गुड़ शक्कर हो लिए
अंग वस्त्र धारण सरकार हैं .... ।
सब चारण तैयार हैं......
मौन व्रत स्वाभाविक है
अच्छा बुरा मन माफिक है
जो अपने खुद का मालिक है
उस साधारण पर वार हैं .... ।
सब चारण तैयार हैं......।
~यशवन्त यश©
कुछ उधर भी खड़े
चरणों में लिपटे पड़े
सब चारण तैयार हैं.... ।
हाथों में स्मृति चिह्न लिए
मुद्रा-प्रशस्ति गिन लिए
गुण, गुड़ शक्कर हो लिए
अंग वस्त्र धारण सरकार हैं .... ।
सब चारण तैयार हैं......
मौन व्रत स्वाभाविक है
अच्छा बुरा मन माफिक है
जो अपने खुद का मालिक है
उस साधारण पर वार हैं .... ।
सब चारण तैयार हैं......।
~यशवन्त यश©
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-09-2015) को "बढ़ते पंडाल घटती श्रद्धा" (चर्चा अंक-2112) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
अनन्त चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'