यूं तो
झूठ,
झूठ ही रहता है
पर
कभी कभी
रंग बदल कर
सच के मुखौटे में
छिप कर
अपना सा
लगने लगता है।
यूं तो
सच,
सच ही रहता है
पर
कभी कभी
झूठ की
चादर के भीतर
खौफ में जी कर
पराया सा
लगने लगता है।
जो जैसा है
वह
वैसा ही रहता है
रूप रंग के
आवरण में
कुछ पल
छल देता है
या छला जाता है
पर फिर
वह वक़्त भीआता है
जब पर्दा हटने पर
हर अपना
पराया
और हर पराया
अपना सा
लगने लगता है।
~यशवन्त यश©
झूठ,
झूठ ही रहता है
पर
कभी कभी
रंग बदल कर
सच के मुखौटे में
छिप कर
अपना सा
लगने लगता है।
यूं तो
सच,
सच ही रहता है
पर
कभी कभी
झूठ की
चादर के भीतर
खौफ में जी कर
पराया सा
लगने लगता है।
जो जैसा है
वह
वैसा ही रहता है
रूप रंग के
आवरण में
कुछ पल
छल देता है
या छला जाता है
पर फिर
वह वक़्त भीआता है
जब पर्दा हटने पर
हर अपना
पराया
और हर पराया
अपना सा
लगने लगता है।
~यशवन्त यश©
यश जी प्रभावी रचना
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