बच्चे
सिर्फ देखने में ही
छोटे होते हैं
लेकिन
उनका मन
उनकी सोच
बड़ों के
संकुचित
कुंठित
दायरे से
कहीं बड़ी होती है.....
बच्चे
खेलते कूदते
कोई भेद भाव नहीं करते
अपनी जाति
नस्ल, धर्म
रंग और रूप का .....
बच्चे
अपने बचपन में
सभ्यता के
शिक्षक होते हैं
जो बड़े हो कर
बन जाते हैं छात्र
इस तिलिस्मी
रंगमंच के।
~यशवन्त यश©
सिर्फ देखने में ही
छोटे होते हैं
लेकिन
उनका मन
उनकी सोच
बड़ों के
संकुचित
कुंठित
दायरे से
कहीं बड़ी होती है.....
बच्चे
खेलते कूदते
कोई भेद भाव नहीं करते
अपनी जाति
नस्ल, धर्म
रंग और रूप का .....
बच्चे
अपने बचपन में
सभ्यता के
शिक्षक होते हैं
जो बड़े हो कर
बन जाते हैं छात्र
इस तिलिस्मी
रंगमंच के।
~यशवन्त यश©
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