हर जगह
हर कहीं
हर कोई
दिखा रहा है
अपना तमाशा
कुछ उम्मीद लिए
या
नाउम्मीदी के शीशे में
बुझते दीयों का
अक्स देखते हुए
हर जगह
हर कहीं
हर कोई
बन रहा है
खुद ही
एक तमाशा।
~यशवन्त यश©
हर कहीं
हर कोई
दिखा रहा है
अपना तमाशा
कुछ उम्मीद लिए
या
नाउम्मीदी के शीशे में
बुझते दीयों का
अक्स देखते हुए
हर जगह
हर कहीं
हर कोई
बन रहा है
खुद ही
एक तमाशा।
~यशवन्त यश©
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