06 November 2015

तमाशा

हर जगह
हर कहीं
हर कोई
दिखा रहा है
अपना तमाशा
कुछ उम्मीद लिए
या
नाउम्मीदी के शीशे में
बुझते दीयों का
अक्स देखते हुए
हर जगह
हर कहीं
हर कोई
बन रहा है
खुद ही
एक तमाशा।

~यशवन्त यश©

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