धर्म! वह नहीं
जो हम समझते हैं
सदियों की चली आ रही
रूढ़ियों से।
धर्म!
वह नहीं
जो बाँट चुका है हमें
हिन्दू,मुस्लिम
सिख,पारसी
यहूदी,ईसाई
और न जाने कितनी ही
अनगिनत अनजानी
संज्ञाओं और विशेषणों में।
तो धर्म क्या है ?
धर्म वह है
जिसे धरण किया जा सके
अपनाया जा सके
सिखाया जा सके
बताया जा सके ।
धर्म !
वह धारणा है
जो ले चलती है
अच्छाई की राह पर
स्त्री-पुरुष
काले गोरे
देश-काल और
भाषा का
भेद किए बिना
जो देखती है
हर मानव को
समभाव से
और समरसता से।
धर्म !
मन की शांति है
शक्ति है
और अभिव्यक्ति है
जो हर व्यक्ति को
सिखाती है
ज़मीन पर टिके रह कर
आसमान को छूना।
~यशवन्त यश©
जो हम समझते हैं
सदियों की चली आ रही
रूढ़ियों से।
धर्म!
वह नहीं
जो बाँट चुका है हमें
हिन्दू,मुस्लिम
सिख,पारसी
यहूदी,ईसाई
और न जाने कितनी ही
अनगिनत अनजानी
संज्ञाओं और विशेषणों में।
तो धर्म क्या है ?
धर्म वह है
जिसे धरण किया जा सके
अपनाया जा सके
सिखाया जा सके
बताया जा सके ।
धर्म !
वह धारणा है
जो ले चलती है
अच्छाई की राह पर
स्त्री-पुरुष
काले गोरे
देश-काल और
भाषा का
भेद किए बिना
जो देखती है
हर मानव को
समभाव से
और समरसता से।
धर्म !
मन की शांति है
शक्ति है
और अभिव्यक्ति है
जो हर व्यक्ति को
सिखाती है
ज़मीन पर टिके रह कर
आसमान को छूना।
~यशवन्त यश©
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