अंतर्जाल के
इस स्वार्थी
मतलबी युग में
बदल रहे हैं अब
रिश्तों के मायने।
रिश्ते-
जो कभी हुआ करते थे
समर्पित
सगे या मुंह बोले
रिश्ते-
जो कभी सीमित थे
रिश्तों के भीतर
अब लांघ रहे हैं
अपनी सीमा।
चौहद्दी के भीतर
और बाहर
रिश्ते
आँका करते हैं
अब अपना स्तर
आर्थिक स्थिति
और आडंबर।
रिश्ते -
अब सिर्फ रिश्ते नहीं रहे
रिश्ते -
अब हो चुके हैं व्यापार
और हम सब
बन गए हैं
दुकानदार
जिसके भंडार में
न भाव है, न भावना।
आज के दौर में
रिश्ते -
करने लगे हैं
सिर्फ मुनाफे की कामना।
~यशवन्त यश©
इस स्वार्थी
मतलबी युग में
बदल रहे हैं अब
रिश्तों के मायने।
रिश्ते-
जो कभी हुआ करते थे
समर्पित
सगे या मुंह बोले
रिश्ते-
जो कभी सीमित थे
रिश्तों के भीतर
अब लांघ रहे हैं
अपनी सीमा।
चौहद्दी के भीतर
और बाहर
रिश्ते
आँका करते हैं
अब अपना स्तर
आर्थिक स्थिति
और आडंबर।
रिश्ते -
अब सिर्फ रिश्ते नहीं रहे
रिश्ते -
अब हो चुके हैं व्यापार
और हम सब
बन गए हैं
दुकानदार
जिसके भंडार में
न भाव है, न भावना।
आज के दौर में
रिश्ते -
करने लगे हैं
सिर्फ मुनाफे की कामना।
~यशवन्त यश©
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