बस
यूं ही कभी
चलते चलते
थोड़ा रुक कर
सुस्ता कर
एक पड़ाव से
दूसरे पड़ाव की ओर
कंटीले गति अवरोधकों को
लांघ कर
जिंदगी का सफर
जब पहुंचता है
अपने अंत की ओर
तब रह जाता है
सिर्फ घूर घूर कर
देखना
दीये की
लड़खड़ाती -टिमटिमाती
बुझने को बेचैन
लौ की छटपटाहट।
~यशवन्त यश©
यूं ही कभी
चलते चलते
थोड़ा रुक कर
सुस्ता कर
एक पड़ाव से
दूसरे पड़ाव की ओर
कंटीले गति अवरोधकों को
लांघ कर
जिंदगी का सफर
जब पहुंचता है
अपने अंत की ओर
तब रह जाता है
सिर्फ घूर घूर कर
देखना
दीये की
लड़खड़ाती -टिमटिमाती
बुझने को बेचैन
लौ की छटपटाहट।
~यशवन्त यश©
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-03-2016) को "होली तो अब होली" (चर्चा अंक - 2293) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'