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12 April 2016

हज़रत गंज

नवाबों के शहर में जहाँ
बिखरे हैं कई रंग
हजरातों की बस्ती
जिसे कहते हैं हज़रत गंज ।

यह मेरे शहर की
धड़कन है
जान है
इसकी हर अदा पे फिदा
हर बूढ़ा और नौजवान है ।

यहाँ मोटरों के रेले हैं
चाटों के ठेले हैं
यहाँ के बरामदों में
सभ्यताओं के मेले हैं ।

बुर्कानशीं हैं यहाँ
तो बेपरवाह मस्तियाँ हैं
कॉफी की चुस्कीयों संग
साहित्य की गोष्ठियाँ हैं ।

पहनावे मिलते हैं यहाँ
दुकानों पे तरह तरह के
दिखावे दिखते हैं यहाँ
इन्सानों में तरह तरह के ।

मैंने देखा है यहाँ
जूठनों को चाटता बचपन
नवाबों का शहर और
हजरातों का हज़रत गंज।

~यशवन्त यश©

01 April 2016

मूर्खता

मूर्खता
हमारे भीतर
कहीं गहरे
रच बस कर
बना लेती है
अपना
मुस्तखिल ठौर
इस जीवन की
सच्चाईयों
बुराइयों
और
अच्छाइयों के साथ।
शुरू से अंत तक
शून्य से शून्य तक
उसी आरंभ पर
आ मिलकर
सब कुछ अपने में
समेटते हुए
मौन की भाषा में
कुछ कहते हुए
मूर्खता
जब निकलती है
बाहर
सनक और गंभीरता के
अबूझ आवरण से
तब
बन जाती है कारण
औरों के हास्य का
लेकिन खुद में
होती है एक विमर्श
क्या-क्यों और कैसे के
पल पल उभरते
असंख्य प्रश्नों का।

  ~यशवन्त यश©
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