समय की धारा
समय की धारा
तेज़ी से चलते चलते
अपने साथ बहा लेती है
बहुत से कल और आज को
भूत और वर्तमान को
सैकड़ों अवरोधो को भेद कर
कितनी ही बातों को
खुद में समेट कर
थोड़ी रेत का ढेर बन कर
कुछ रुकती है
थमती है
और फिर चलती है
समय की धारा
अपनी अबूझ
मंज़िल की ओर।
~यशवन्त यश©
जो गतिमान है वही समय की इस धारा का साक्षी बन सकता है..
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