06 May 2017

बस अब डूबना बाकी है


मंज़िल तो वही है  वहीं है 
पहुँचने की राह बदलनी बाकी है 
देखना है यहाँ सांसें कितनी बचीं 
कुछ और दूर चलना बाकी है । 

अरमान तो यह था कि चलेंगे साथ 
सात समुंदर पार तक 
मझधार पर भंवर में आ फंसा 
बस अब डूबना बाकी है। 

-यश©

11 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (07-05-2017) को
    "आहत मन" (चर्चा अंक-2628)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार।

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  3. बहुत खूब ... चाहता क्या है होता क्या ही इंसान के साथ ...

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  4. भंवर से बाहर निकलने का भाव लेकर कविता को और विस्तार दीजिये। जीवन का अधूरापन एक कड़वा यथार्थ है लेकिन औरों को प्रेरणा के लिए मक़ाम तक पहुँचने के रास्ते कवि के कल्पनालोक से बाहर आने ही चाहिए। मैं उम्मीद करता हूँ कि आप इस रचना में ज़रूर कुछ न कुछ और जोड़ेंगे। अधूरी बधाई स्वीकार करें।

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    1. विस्तार देने की कोशिश करेंगे। लेकिन मेरे लिखे को 'कविता' न कहें। इस तरह का लिखा किसी भी दृष्टि से 'कविता' हो नहीं सकता। यह सिर्फ मन के उद्गार मात्र हैं।

      धन्यवाद !

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  5. वाह !!बहुत खूब ।

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