14 July 2017

बी ए पास रिक्शे वाला


बी ए पास
वह रिक्शे वाला
मौसम की हर मार से
बे असर –बे खबर
हर समय रहता है तैयार
चलने को
तलवार की धार की तरह
पैनी तीखी
मेरे शहर की
सड़कों के साथ जाती
किसी की मंज़िल तक
पहुँचने को
या
पहुंचाने को।

वह
सवारियों के लिए
उठा लेता है
‘हुड’
धूप और
बरसात से बचने को
लेकिन खुद
पसीने से तर-बतर
चेहरे पर मुस्कान
और ज़ुबान पर
मीठी बात लिए
किसी कुशल
‘सेल्समैन’ की तरह
गड्ढेदार सड़कों के
प्रतिउत्तर का
अपने संयम और
उत्साह से 
सामना करते हुए
बस कामना करता है
अपने ‘उचित प्रतिफल’ की।

बी ए पास
वह रिक्शे वाला
कल मुझे मिला
और इच्छा करने लगा
कहीं  
एक अदद नौकरी की
सिफ़ारिश की....
मदद की
बिना उसका उत्तर दिये
बी ए पास ‘मैं’
बस अपने मौन में
यही सोचता रहा
कि मुझसे कहीं बेहतर
आत्मनिर्भर
बी ए पास
वह रिक्शे वाला
आखिर क्यों
बनना चाहता है
मेरी तरह
सूट-बूट
टाई और काले चश्मे वाला
एक (अ)सभ्य मजदूर। 

-यश©
14/07/2017

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-07-2017) को "धुँधली सी रोशनी है" (चर्चा अंक-2667) (चर्चा अंक-2664) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जो जहाँ है वहाँ संतुष्ट नहीं रह सकता..यही तो मानव की विडम्बना है

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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