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24 August 2017

रोलर कोस्टर ज़िन्दगी

रोलर कोस्टर ज़िन्दगी.....
अपने उतार चढ़ावों के 
एक एक पल में 
समेटे रहती है ....
जाने कितनी ही खुशियाँ 
और कितने ही गम .....
फिर भी रहते हैं हम 
वैसे ही.....
कल आज और 
कल की तरह...
थोड़े से शान्त 
थोड़े से उतावले 
टिक-टिक करती 
बढ़ती जातीं 
घड़ी की सुइयों 
के पग चिह्नों को 
नापते जाने के 
कई सफल-असफल 
प्रयासों के साथ 
कभी 
खुशियों से नाचते-गाते 
और कभी 
सर झुकाए 
किसी सोच में डूब कर 
आँखों से बहने को बेकरार 
सैलाब को थाम कर 
रोलर कोस्टर ज़िन्दगी
बंद पलकों के भीतर 
दिखाती है 
आरंभ से अंत का 
एक अंतहीन 
चलचित्र!

-यश©
24/08/2017

17 August 2017

हर मुस्कुराते चेहरे के पीछे....

हर मुस्कुराते चेहरे के पीछे
एक कहानी होती है
जिसे सुनकर हँसती दुनिया
या कभी कभी वह रोती है  ।

कोई कहता हँसता है वह
कोई कहता पागल है
ऐसी कैसी उसकी फितरत
भीतर से वह घायल है

मिल कर गले कोई नहीं
जो सुनकर मन की बातों को
अपने ढंग से देख समझ कर
दिखला दे नयी राहों को

जीवन की आपा-धापी में
एक धार बहानी होती है
हर मुस्कुराते चेहरे के पीछे
एक कहानी होती है।


-यश ©
17/08/2017

15 August 2017

तिरंगे में पुते चेहरे दिखने लगे हैं

तिरंगे में पुते चेहरे दिखने लगे हैं 
तिरंगे फिजा में लहरने लगे हैं 
ये कुछ पल का नज़ारा है मानो न मानो 
फिर तो बस शाम को बुहरने लगे हैं 

करके सुबह सलाम,बस इतना सा करना
चूने की सड़कों पे संभल संभल के चलना 

न आए पैरों तले, न बेकद्री से बिखरे 
मेरा देश और ये झण्डा खूब खुशियों से निखरे 

-यश-©

आप सभी को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ !
खुद को सावधान रखें...तिरंगे का मान रखें !

10 August 2017

कुछ लोग -40

संपर्कहीन
बीते दौर के
कुछ लोग
जिनसे जुड़े होते हैं
हम
अपनी पूरी भावनाओं
और संवेगों के साथ,
संभाले होते हैं
जिनकी स्मृति
और कुछ
स्वर्णिम पल
इस उम्मीद में
कि फिर कभी
कहीं मिलेंगे
इसी जीवन में
किसी नदी के किनारे,
या सड़क पर
कहीं को जाते हुए
या आते हुए-
उनके नाम
जब टकराते हैं
बदले हुए चेहरों -
पर,
उन्हीं हाव-भावों
सहयोग और अपनेपन
के साथ,
तब ऐसा लगता है
जैसे
तेज़ भागते वक़्त को भी
होती है कद्र
कुछ लोगों के
भीतर के
एहसासों की।
.
-यश©

03 August 2017

मन की देहरी पर


मन की देहरी पर
मन की बातों को लेकर
मैं -जैसा हूँ
वैसा ही बने रह कर
बस कह देता हूँ
कुछ शब्द
जो कुछ भी नहीं हो कर
कहीं समा जाते हैं
कुछ पन्नों के भीतर ।

कुछ पन्ने
जो चिन्दियाँ बन कर
उड़ कर
गिरते जाते हैं
यहाँ-वहाँ
और न जाने
क्या-क्या कह कर
कोई सुनने वाला हो यहाँ
तो वो ही समझेगा
न जाने क्या क्या दफन है
मेरे मन की देहरी पर।

-यश©
03/08/2017

01 August 2017

एक कहानी ऐसी लिख दूँ


एक कहानी ऐसी लिख दूँ
जिसमें अपने मन की कह दूँ
काले यथार्थ की गहरी परतों पर
कल आज और कल को रच दूँ।

एक कहानी ऐसी लिख दूँ
जिससे जुड़ा हो बचपन सब का
परावर्तित हो भूत-भविष्य और
दिखे चलचित्र तब और अब का।

एक कहानी ऐसी लिख दूँ
जिसका अंत अनादि हो कर
जुड़ा हो सबके अपने आज से
कुछ कल्पना के रंग में घुल कर।

एक कहानी ऐसी लिख दूँ
जिसमें अपने मन की कह कर
शब्दों के मनकों से जुड़ लूँ
और हल्का खुद को थोड़ा कर लूँ।

एक कहानी ऐसी लिख दूँ।

-यश © 
01/08/2017

बहुत दिन पुराना यह अधूरा ड्राफ्ट आखिरकार आज पूरा हुआ :)
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