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23 September 2017

मैं देवी हूँ-6 (नवरात्रि विशेष)

मेरे नाम से
न जाने कितनी ही
आहुतियाँ दी जाती हैं
रोज़
यज्ञ वेदी पर
कभी सरस्वती
कभी लक्ष्मी
कभी दुर्गा
और कभी काली
न जाने कितने ही नाम
रच दिए गए हैं मेरे
लेकिन क्या
इन नौ दिनों के अलावा
तुमने देखा है
मुझे
इन्हीं पूज्य रूपों में?
अगर हाँ
तो आखिर क्यों ?
मैं दिखती हूँ
अखबार की सुर्खियों में !
आखिर क्यों ?
सबको दिखता है
सिर्फ मेरा वाह्य आवरण!
आखिर क्यों ?
सबकी नज़रें
करती हैं
रोज़ चीर-हरण मेरा !
जानती हूँ!
इन प्रश्नों का सही जवाब
न है
न कभी मिलेगा
पर इतना समझ लेना
कि
मैं
कोमल नहीं
तुम्हारे हर
पुरुषार्थ की जननी हूँ
मैं देवी हूँ!

-यश©

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21 September 2017

मैं देवी हूँ -5 (नवरात्रि विशेष)

यह समाज
यह आस-पड़ोस
यह रिश्ते-नाते
क्या सच में मेरे हैं
क्या सच में अपने हैं
या बस
यूं ही
अपने भीतर की
तमाम कुंठाओं का
प्रतिरूप
अपने स्मार्ट फोन की
स्क्रीन पर देखते हुए
तुम में से
कुछ लोग
करते रहोगे
छद्म गुणगान
जगरातों की
पैरोडी सुर-ताल पर।
मुझे पता है
तुम सबका असली रूप
मुझे मालूम है
तुम्हारे मन के
भीतर की एक-एक बात
एक-एक राज़
जो तुम्हारे चेहरे
और तुम्हारी नज़रें
खुद ही बता देती हैं
बस-ट्रेन और टेम्पो के भीतर
खुली सड़क पर
और हर
उस जगह
जहां मुझ पर
सवाल उठाने वाले
खुद ही बन जाते हैं
प्रश्न चिह्न
क्योंकि
मैं ही समिधा
और यज्ञ की वेदी हूँ
मैं देवी हूँ!

-यश©


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10 September 2017

नहीं कोई साथ निभाने को....

समय के चक्रव्यूह में फँसकर 
नहीं बचा कुछ पाने को। 
उखड़ती साँसों से क्या कहना 
अमृत को चख जाने को।  
बहरूपियों के जीवन मंच पर 
कठपुतलियाँ खेल दिखाती हैं।  
जैसा जो कोई कहता जाता 
बस वैसा करती जातीं हैं।  
अपनी अपनी राहों पर सब 
जुटे हैं मंज़िल पाने को।  
गैरों में किसको खुद का समझें 
नहीं कोई साथ निभाने को। 

-यश©
10/09/2017 


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