मौन के एकांत में
कहीं खो कर
किसी निर्वात के
हवाले हो कर
सोच रहा हूँ
खुद पर लगे
प्रश्न चिह्न हटाने की
खुद से खुद की
दूरियाँ मिटाने की
यह समय
जो अपने हर पल
ले रहा है मेरा इम्तिहान
कातिलाना होकर
न जाने क्यों
मुझ पर चाह रहा है
टूट पड़ना
न जाने क्यों
चाह रहा है
मुझ से लड़ना
खैर
मुझे लड़ना है
खुद के उस अबूझ
अन-सुलझे
आवरण से
जो अनचाहे ही
चस्पा हो गया है
मेरे चेहरे पर।
यश ©
31/03/2018
कहीं खो कर
किसी निर्वात के
हवाले हो कर
सोच रहा हूँ
खुद पर लगे
प्रश्न चिह्न हटाने की
खुद से खुद की
दूरियाँ मिटाने की
यह समय
जो अपने हर पल
ले रहा है मेरा इम्तिहान
कातिलाना होकर
न जाने क्यों
मुझ पर चाह रहा है
टूट पड़ना
न जाने क्यों
चाह रहा है
मुझ से लड़ना
खैर
मुझे लड़ना है
खुद के उस अबूझ
अन-सुलझे
आवरण से
जो अनचाहे ही
चस्पा हो गया है
मेरे चेहरे पर।
यश ©
31/03/2018
बहुत गहरी बात
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