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28 April 2018

28 साल

28 साल पहले, 28 अप्रैल 1990 को आगरा से प्रकाशित साप्ताहिक 'सप्तदिवा' में जब यह छपा था तब मैं लगभग 6 साल का था ( जिसे संपादक महोदय ने 7 वर्ष लिख दिया  )।
यह जो लिखा है पूरी तरह से बेतुका है लेकिन अपना नाम देख कर Motivation तो मिला ही। इस सबका पूरा श्रेय पापा को ही जाता है क्योंकि मुझे न कभी रोका न टोका जबकि कुछ लोगों ने कई तरह से demotivate करने की भी कोशिश की।
खैर तब से अब तक मैं अपने मन का लिखता और कई पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में समय-समय पर छपता आ रहा हूँ।
मेरे इस ब्लॉग  http://jomeramankahe.blogspot.com  पर अब तक का लिखा बहुत-कुछ संग्रहित है।

-यश-

3 comments:

  1. उम्र को देखते हुए कविता अच्छी है।

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  2. negetive लोगों से दुरी भली

    पुराणी यादों को संजो के रखना अपने आप में बहुमूल्य खजाना है.


    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
    गम कहाँ जाने वाले थे रायगाँ मेरे (ग़जल 3)

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-04-2017) को "अस्तित्व हमारा" (चर्चा अंक-2956) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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