28 साल पहले, 28 अप्रैल 1990 को आगरा से प्रकाशित साप्ताहिक 'सप्तदिवा' में जब यह छपा था तब मैं लगभग 6 साल का था ( जिसे संपादक महोदय ने 7 वर्ष लिख दिया )।
यह जो लिखा है पूरी तरह से बेतुका है लेकिन अपना नाम देख कर Motivation तो मिला ही। इस सबका पूरा श्रेय पापा को ही जाता है क्योंकि मुझे न कभी रोका न टोका जबकि कुछ लोगों ने कई तरह से demotivate करने की भी कोशिश की।
खैर तब से अब तक मैं अपने मन का लिखता और कई पत्रिकाओं व समाचार पत्रों में समय-समय पर छपता आ रहा हूँ।
मेरे इस ब्लॉग http://jomeramankahe.blogspot.com पर अब तक का लिखा बहुत-कुछ संग्रहित है।
-यश-