सब खामोश हैं और सब खामोश ही रहेंगे
जो अब तक बोलते थे बहुत कुछ
कुछ भी नहीं कहेंगे।
इस दौर में उतर रहे हैं कई ओढ़े हुए नकाब
नकली चेहरों को नहीं सूझ रहे
चुभते सवालों के जवाब।
अब तक सहा सभी ने अब और नहीं सहेंगे
जो अब तक झेलते थे बहुत कुछ
खामोश नहीं रहेंगे।
-यश ©
15/04/2018
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-04-2017) को ""चुनाव हरेक के बस की बात नहीं" (चर्चा अंक-2943) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर!
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