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15 May 2018

सुनो ताज !


ताज!
सुना है तुम अब वैसे नहीं रहे
जैसा मैं देखा करता था
हाथीघाट* के सहारे चलते हुए
यमुना के उस पार!
तुम
सूरज की तेज रोशनी में
अलग ही चमका करते थे
तुम रात के चटख अंधेरे में भी
चाँदनी की बाट जोहते
दिखा करते थे।
ताज !
सुना है
अब तुम पर
काई की परतें जमने लगी हैं
कालिख से
तुम्हारी दोस्ती
अब कुछ ज़्यादा बढ़ने ही लगी है
क्यों ?
आखिर क्यों ?
क्या यूँ
सदियों से खड़े रह कर
यमुना को
नदी से
नाले में बदलते देख कर
उसकी नीली लहरों को
काली स्याह होते देखकर
अब डोलने लगा है
तुम्हारा आत्मविश्वास ?
या
होने लगा है
तुम्हारे संगमरमरी हुस्न पर
बढ़ती उम्र का असर ?
जो भी हो
तुमको होना ही होगा
बे-रहम
हर उस धुएँ
और गुबार पर
जो अपने आगोश में लेकर
तुमको
बिसरा देना चाहता है
अमर प्रेम के नक्शे से ।
तुमको
खुदका ही हकीम बनकर
करनी होगी
खुद की दवा
क्योंकि
कल हो
या आज
तुम्हीं रहोगे सरताज
बेहिसाब युगलों के
धड़कते दिलों में।

-यश©
11/05/2018
08:57 PM
--------------
15/05/2018
06:58 PM
*हाथीघाट -आगरा शहर में यमुना किनारे की एक जगह जहाँ 2 हाथियों की प्राचीन मूर्तियाँ लगी हैं।


10 May 2018

क्या लिखूँ?

तूफाँ के हर मंज़र के बाद
गिरे-पड़े दरख्तों का दर्द लिखूँ
या इस गहराती गर्मी में
कहीं का मौसम का सर्द लिखूँ

क्या लिखूँ?

सड़क किनारे सोते-जागते
किसी आवारा का ख्वाब लिखूँ
या आधी रात के सन्नाटे में
किसी पर चढ़ती  शराब लिखूँ

क्या लिखूँ?

क्या लिखूँ कि जिसको पढ़ कर
खुद ही रोऊँ और हंसू भी
हर अक्षर की तरह बिखर कर
अपनी कोई बात कहूँ भी

फुटपाथों पर लोट लगाते
उस बचपन के रंग लिखूँ
या तेज़ी से भागते जाते
किसी जीवन के ढंग लिखूँ

क्या लिखूँ?


-यश ©
10/05/2018

01 May 2018

वो मजदूर का बच्चा है

तन से मैला पर मन से सच्चा है
गुरबत में जी कर भी
खुद में अच्छा है
वो मजदूर का बच्चा है।

वो देखता है रोज़
नयी इमारतों को बनते
किसी और के ख्वाबों को
नये रंगों में ढलते।

उसे फूलों की नहीं, ईंट,मौरंग
और सीमेंट की खुशबू पसंद है
उसे संगीत की नहीं
छैनी-हथोड़े की हर धुन पसंद है।

वो अक्सर सुनता है खंडहरों
और बंजर धरती की कहानियाँ
जिन पर खुदी नींवें
अब छूती हैं ऊँचाइयाँ।

भीतर से मजबूत पर बाहर से कच्चा है
घरौंदे सा उसका घर
महलों से अच्छा है
वो मजदूर का बच्चा है।

यश ©
26/04/2018


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