तूफाँ के हर मंज़र के बाद
गिरे-पड़े दरख्तों का दर्द लिखूँ
या इस गहराती गर्मी में
कहीं का मौसम का सर्द लिखूँ
क्या लिखूँ?
सड़क किनारे सोते-जागते
किसी आवारा का ख्वाब लिखूँ
या आधी रात के सन्नाटे में
किसी पर चढ़ती शराब लिखूँ
क्या लिखूँ?
क्या लिखूँ कि जिसको पढ़ कर
खुद ही रोऊँ और हंसू भी
हर अक्षर की तरह बिखर कर
अपनी कोई बात कहूँ भी
फुटपाथों पर लोट लगाते
उस बचपन के रंग लिखूँ
या तेज़ी से भागते जाते
किसी जीवन के ढंग लिखूँ
क्या लिखूँ?
-यश ©
10/05/2018
गिरे-पड़े दरख्तों का दर्द लिखूँ
या इस गहराती गर्मी में
कहीं का मौसम का सर्द लिखूँ
क्या लिखूँ?
सड़क किनारे सोते-जागते
किसी आवारा का ख्वाब लिखूँ
या आधी रात के सन्नाटे में
किसी पर चढ़ती शराब लिखूँ
क्या लिखूँ?
क्या लिखूँ कि जिसको पढ़ कर
खुद ही रोऊँ और हंसू भी
हर अक्षर की तरह बिखर कर
अपनी कोई बात कहूँ भी
फुटपाथों पर लोट लगाते
उस बचपन के रंग लिखूँ
या तेज़ी से भागते जाते
किसी जीवन के ढंग लिखूँ
क्या लिखूँ?
-यश ©
10/05/2018
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-05-2017) को "देश निर्माण और हमारी जिम्मेदारी" (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'