क्या पता कल था किसका
और किसका यह आज है
ज़िंदगी धोखेबाज है।
कल लिखे थे गीत सुनहरे
कल क्या लिखा जाएगा।
कोई कहेगा कर्कश स्वर में
कोई सुर में गाएगा।
यूं ही अकेले बैठे-ठाले
समय की स्याह कहानी के
टूटे-फूटे हर्फों के ये
पन्ने कौन समझ पाएगा।
ना-मालूम इन राहों पर अब
कैसे चलना आएगा।
थमना जिसने कभी न सीखा
बैठ कहीं सुस्ताएगा।
मिटेगा कोई राम भरोसे
कोई अमर हो जाएगा।
आना-जाना लगा ही रहेगा
सांस तो सिर्फ परवाज़ है
ज़िंदगी धोखेबाज है।
-यश ©
17 जून/2018
और किसका यह आज है
ज़िंदगी धोखेबाज है।
कल लिखे थे गीत सुनहरे
कल क्या लिखा जाएगा।
कोई कहेगा कर्कश स्वर में
कोई सुर में गाएगा।
यूं ही अकेले बैठे-ठाले
समय की स्याह कहानी के
टूटे-फूटे हर्फों के ये
पन्ने कौन समझ पाएगा।
ना-मालूम इन राहों पर अब
कैसे चलना आएगा।
थमना जिसने कभी न सीखा
बैठ कहीं सुस्ताएगा।
मिटेगा कोई राम भरोसे
कोई अमर हो जाएगा।
आना-जाना लगा ही रहेगा
सांस तो सिर्फ परवाज़ है
ज़िंदगी धोखेबाज है।
-यश ©
17 जून/2018
सही कहा
ReplyDeleteबहुत खूब
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