जिंदगी के
खुशनुमा पलों पर
अगर चल रहा होता ऑफर
एक के साथ एक
या दो फ्री का
तो कितना अच्छा होता
थोड़ी देर को ही सही
हर कोई
कितना सच्चा होता।
या ऐसा होता
कि
लौटा सकते हम
अपने
अनचाहे पलों को
और बदले मे पा सकते
अपने बीते बचपन
और कभी के
बिछुड़े
अपनों को
हर रात देखे
हसीन सपनों को।
लेकिन ....
ज़िंदगी
कोई सुपर मार्केट नहीं
जहाँ
चलती है
हमारी खुद की मर्ज़ी
चीजों को
चुनने,आज़माने
और बदले जाने की।
ज़िंदगी तो
असल में
स्याह-सफ़ेद परतों की
एक विचित्र
कविता
या कहानी है
खुद ही पढ़ते-झेलते
और
कहते जाने की;
इसमें
संभव नहीं पाना
कोई भी ऑफर
रिटर्न या एक्सचेंज
बस
एक गुंजाइश है
साँसों के चलते
या थमते जाने की ।
-यश©
05/07/2018
खुशनुमा पलों पर
अगर चल रहा होता ऑफर
एक के साथ एक
या दो फ्री का
तो कितना अच्छा होता
थोड़ी देर को ही सही
हर कोई
कितना सच्चा होता।
या ऐसा होता
कि
लौटा सकते हम
अपने
अनचाहे पलों को
और बदले मे पा सकते
अपने बीते बचपन
और कभी के
बिछुड़े
अपनों को
हर रात देखे
हसीन सपनों को।
लेकिन ....
ज़िंदगी
कोई सुपर मार्केट नहीं
जहाँ
चलती है
हमारी खुद की मर्ज़ी
चीजों को
चुनने,आज़माने
और बदले जाने की।
ज़िंदगी तो
असल में
स्याह-सफ़ेद परतों की
एक विचित्र
कविता
या कहानी है
खुद ही पढ़ते-झेलते
और
कहते जाने की;
इसमें
संभव नहीं पाना
कोई भी ऑफर
रिटर्न या एक्सचेंज
बस
एक गुंजाइश है
साँसों के चलते
या थमते जाने की ।
-यश©
05/07/2018