अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
इंसान बाज़ारों में बिकता है ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
बचपन फुटपाथों पर दिखता है?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
कोई दर-दर भटकता है ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
सड़क किनारे सोता है ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
कठुआ-मुजफ्फरपुर होता है?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
इंसानियत का कत्ल होता है?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
अपनी नीयत बदली हुई ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
है आग दहेज की लगी हुई ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
बेड़ियाँ अब भी जकड़ी हुईं ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
हैं अफवाहें फैली हुईं ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
हैं फिज़ाएँ बदली हुईं?
-यश©
12/08/2018
इंसान बाज़ारों में बिकता है ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
बचपन फुटपाथों पर दिखता है?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
कोई दर-दर भटकता है ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
सड़क किनारे सोता है ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
कठुआ-मुजफ्फरपुर होता है?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
इंसानियत का कत्ल होता है?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
अपनी नीयत बदली हुई ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
है आग दहेज की लगी हुई ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
बेड़ियाँ अब भी जकड़ी हुईं ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
हैं अफवाहें फैली हुईं ?
अगर आज़ाद हैं हम तो क्यों
हैं फिज़ाएँ बदली हुईं?
-यश©
12/08/2018