ढलती जाती
गहराई हुई रात के
सन्नाटे में
मद्धम संगीत के
लहराते सुर
एकांत सफर के
साक्षी बन कर
जैसे भर देते हैं प्राण
साथ छोड़ चुके
किसी साए में।
पौ के फटने तक
अनगिनत
ख्वाबों के दरिया में
डूब कर-उतर कर
पलकें खुलते ही
मिल जाती है
मुक्ति
हो जाती है
विरक्ति
नयी निशा के मिलने तक
और
शमा के बुझने तक।
-यश ©
25/10/2018
सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete