प्रतिलिप्याधिकार/सर्वाधिकार सुरक्षित ©

इस ब्लॉग पर प्रकाशित अभिव्यक्ति (संदर्भित-संकलित गीत /चित्र /आलेख अथवा निबंध को छोड़ कर) पूर्णत: मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
यदि कहीं प्रकाशित करना चाहें तो yashwant009@gmail.com द्वारा पूर्वानुमति/सहमति अवश्य प्राप्त कर लें।

23 October 2018

वक़्त के कत्लखाने में -14

समय की देहरी पर 
लिखते हुए 
कुछ अल्फ़ाज़ 
गुनगुनाते हुए 
जिंदगी की सरगम 
बजाते हुए 
बेसुरे साज 
कभी-कभी सोचता हूँ 
कि 
आते-जाते ये पल 
ऐसे क्यों हैं ?
कभी 
मेरे मन की करते हैं 
और कभी 
अपने हर वादे से 
मुकरते हैं 
लेकिन यह 
फितरत है हर पल की 
हम इन्सानों की तरह। 
ये पल 
ये समय 
ये लोग 
एक ही जैसे नहीं होते 
वक़्त के 
कत्लखाने में 
आदि से अंत तक 
इनको 
जूझना पड़ता है 
अपने ही 
जुड़वा मुखौटों से। 

-यश ©
23/10/2018

2 comments:

  1. यही जीवन है यही सत्य है।

    ReplyDelete
  2. वाह ! जीवन द्वंद्व से ही बना है

    ReplyDelete
1261
12026
+Get Now!